सूरज तो डूब गया रात के इंतजार मे और तन्हा रात आई,
दिल जले,कोफ़्त कैसा, रात बाकी, अभी तो चाँद निकला कंहा !
अभी रात बाकी,अश्रु-जल भर,पलके भीगेंगी सारी-सारी रात,
होश गंवाता नहीं, कब दस्तक दे-दें, कोन जाने दिल की फरियाद |
गम के आंसू पी-पीकर, गम ही हम से पनाह मांगें जालिम !
हमारी दास्ताँ सुन, मयखाने मे प्यालों पर प्याले भरें जाते हैं...!
अजीब हालात है, अब हम मयखाने से भी लोटा दिये जाते हैं,
इल्जाम पीनेवालों का,मेरे गम,उन्हें पुरी बोतल से नशा नहीं देता !!
क्या करें, किस डगर जायें, लेकर दिल मे बिरह की ज्वाला,
साकी रहम कर,तरस मेरी आह पर, पिला दें अंतिम हाला |
यकीनन जीने को जी लेते,महफूज अगर रहें उनके इरादे,
नफरत मे भी डर है,शिकवा करेंगे, हम तब्बजो नहीं देते !!
जहमत ना उठाते हम पीने की, अगर वह अधरों से न पिलाते,
आँखों के जाम, नजरों से पिलाया गया,नहीं हम कंहा पीते ...?
सजन कुमार मुरारका
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