Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नव अरुणोदय

 

भोर तले नभ में शोभीत अरुणोदय

 

दूर कंही मंदिर में स्वर गूंजे मंगलमय

 

अम्बर में रक्तिम उजाला प्रकाशमय

 

मुखर पंछी उड़े,जागी धरनी गतिमय

 

हर्षित धरा,रूप-माधुर्य से गर्बित-निहाल

 

खिलते पल्लव,हरित पीत, तरुवर विशाल

 

निर्झर झरने,वसुधरा का वैभव बेमिसाल

 

कल कल वहती नदीयाँ,यौवन मय-चाल

 

शाम तले,दीप जले,क्लान्त रबि अस्तमय

 

घोर यामिनी,शीतल शशी का रजत उदय

 

कुंजन-गुंजन,धीर-अधीर,स्तब्द-सुप्त जनाश्रय

 

उद्वेलित वसुधा,अभिलाषित चयन नव जोय्तिर्गमय

 

 

 

सजन कुमार मुरारका

 

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