Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नहीं हो दुर हम से...

 

दुर रहते तुमसे, पर दुर कंहा रह पाते |
कहने के लिये दुर है,पर दुर नहीं दिल से,
आवाज देकर देखो,दिखेगें हर धढ़कन से |
कोई बात नहीं चलो ,तुम दुर हो गये हम से,
समझ नहीं आता,हम दुर हों तुम से कैसे ?
अफसाने,साथ होने का ख्वाब, दुर नहीं होते,
सोचते हैं, ख्वाब में भी दुर रहेंगे तुम से !
पर नींद नहीं आती बिन तुम्हारे ख्वाब के ,
चंद दिनों की नजदीकियां,भुलाये हम कैसे ?
दुर रहते तुमसे,दुर कंहा रह पाते दिल से !
उम्मीदि में, अब दुरियाँ मिटे ना दिल से |
महफ़िल सजती होगी, पर हम ना होंगे ,
हम ने सोचा था जिन्दगी भर दुर ना होंगे ,
जुल्म की इन्तिहा है, दुर किया बेवजह से !
वजह थी आपकी, सजा हमें दी जा रही कैसे ?
हृदय पटल पर अंकित तस्वीर दुर करे कैसे ?
चाहत को पलकों में बसा घूम रहे है कब से,
दुरियाँ मिटे ना मिटे, तुम नहीं हो दुर हम से !
जाने क्या बात,तुम भी हो, पर रहते दुर-दुर से |

 

:-सजन कुमार मुरारका

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