Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पत्थर सा दिल

 

सचल पल में निश्चल नयनो के हलचल
अन्दर निश्चुप,बाहर कितना कोलाहल
बाहर निश्चुप, अन्दर कितना कोलाहल
वो तुम थीं, जो मुझको सदा टोकतीं
“मेरा दिल है पत्थर का ” कह रूठतीं ,
कहा ठीक तुमने, मेरा दिल है पत्थर का,
तुम्हरी यादें बन गई लकीरें, ना बुझी ना मिटीं,
इतने अरसों के बाद,पत्थर सी दिल में सटी

 

 

सजन कुमार मुरारका

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