दोनो के प्रति है आसक्ती अति;
महानता नहीं, है मेरी बिपत्ती !
किसी से तो एक नहीं सम्हलती,
हमारे गले तो दो-दो आ पड़ी
लाज कैसे बचाये,दिमाग मे न आये,
एक साथ दो नावों की करली सवारी !
पत्नी जरूरत हमारी,कविता मन भाये;
साप-छछुंदर सी हालात हो गई हमारी!
कहते हम"पत्नी का साया है भारी"
जब सो जाती,तब कविता की बारी ;
पत्नी न देगी तो कौन देगा रोटी ?
पत्नी कहती कविता नहीं देगी रोटी !
आसमान से गिरा,खज़ूर मे लटका !
धोबी का कुत्ता,न घर का-न घाट का |
बीबी और बाहर कविता के बीच :
फंस गये"सजन"दो पाटन के नीच !
जंहा साबुत बचा न कोय,
अब पछताये क्या होय !
यह दिल की लगी,दिल्लगी हों गई,
शौख-शौखमे अब आदत सी हो गई|
कर सकते,गर आपका उपाय,
तो रहते सुखी,समझ तो आय!
घर मे बीबी और बाहर कविता,
गुलछर्रे उड़ाते, पता न चलता :
छुपाये "कस्तुरी" दिल के अन्दर ;
"मृग"भ्रम मे,असलियत से बेखबर,
खुशबु फ़ैल जाती,छुपाये न छुपती ;
कस्तुरी ही मौत का कारण होती |
बात दुजी "जल्दी से सौतन नहीं सुहाती"
घर मे बीबी और बाहर कविता के पति,
महंगाई के ज़माने मे दो को कैसे पाले !
गुलछर्रे भी उड़ायें, पत्नी को भी सम्भाले |
बन्धुवर,अब सोच,क्यों करते यह उपाय;
दो-तलवार का डर,फिरभी मन को भाये,
हिम्मत कर,दोनों को साथ-साथ रखते !
पत्नी से प्यार,तभी गहरी रात मे लिखते!
पत्नी चाहती है रात का वक्त मेरा
कविता के लिये वक्त का बखेड़ा
पत्नी सोने तक रात का वक्त उसका
कविता का पुरा वक्त शेष रात का ?
सजन कुमार मुरारका
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