हमेशा सच बोलना,
!!?!!
झूट को सच बनाकर;
अब झूट सच ही लगता !
कोरा सच हज़म नहीं होता,
और मैं सच ही बोलता हूँ |
पिताजी ने कहा
हमेशा ईमानदार रहना,
!!?!!
हर ज़गह है बकरार;
बेईमानी की ईमानदारी !
इमान से पेट नहीं भरता ,
स्वार्थ के प्रति मैं ईमानदार हूँ |
पिताजी ने कहा
हमेशा न्याय का साथ देना,
!!?!!
अन्याय से चले सरकार;
अन्यायीयों का दामन थामे !
न्याय भरे बज़ार नगां होता ,
अन्याय सहकर न्याय करता हूँ |
पिताजी ने कहा
इन बातों से सुखी रहोगे देखना,
!!?!!
पिताजी की हर बात हरबार;
क्या जरुरी है सही होना ?
पर सुखी होने के लिये,
मैं उसे किसी भी तरह निभाता हूँ|
(पिता बोले थे-नामक हरीश करमचंदानीजी की कविता से प्रभावित)
सजन कुमार मुरारका
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