Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सबक जिन्दगी का

 

सब जन्मे इक बीज से
सबकी मिट्टी एक
मन मे दुविधा पड़ गयी
हो गये रूप अनेक

 

जो तू सच्चा मन से
सब से बोल एक
उंच नीच की दीवार जो पड़ गयी
हो गये भेद अनेक

 

ऊंचे कुल के कारण से
दुनिया न दिखे एक
जब काया मिट्टी हो गयी
तब कुल कंहा रहे अनेक

 

कहें, ना इत्तरा गर्व से
सबक ले जीवन से एक
जब तेरी नईया मझधार गयी
जाने क्या हो अनेक

 

 

सजन कुमार मुरारका

 

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