Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शब्द तो बहुत, पर जुवां खामोश हैं!!

 

जिंदगी वीरान है!
पर जीने की आरज़ू है;
दिल मे ज़ख्म गहरे है;
पर दर्द चहरे से छुपा है;
कसूर चाहत का है;
पर असर नफ़रत का है;
दीदार को तरसते है;
पर उन्हें फ़ुरसत कंहा है?
प्यारा सा दोस्ताना है;
पर हम बेगाने-गैर से है!
सासों मे यों ही धड्कन है;
पर दिल उनके पास महफूज़ है|
हमारे दरवाज़े उनके लिए खुले है;
पर उनकी खिड़की पे भी ताले है!
मेरा प्यार तो ज़िन्दा है,
पर वह प्यार से भी महरूम है;
उनके मन मे लम्बी दूरियां है;
पर हमारे दिल मे नज़दीकीयां है|
हमे प्यार से बेहिसाब फक्र है,
पर उन्हें प्यार से शर्मसार डर है;
अजब दास्ताँ दिलवर ज़ालिम है ,
पर सासें फ़िर भी उनके लिए बची हैं,
क्या करें शिकायत, सोच मे हैरानी है!
शब्द तो बहुत, पर जुवां खामोश हैं!
जीने की हर आरज़ू जब उनके कैद है;
मुस्कुराते लब है और आँखे नम हैं!

 

 

!!सजन कुमार मुरारका !!

 

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