Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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समय के साथ चले

 

सुख, दुःख, प्यार और जलन

यह दौर कब तक झेले

ख़ुद में मगन, वक़्त कैसे निकले

अपने किये जुल़्म खुद पर

फिर भी चुप, कुछ नहीं बोले

देखना था ये कब तक चले।

कोशिशें तो थी खत्म करने की

क़िस्मत से हल नहीं निकले

अधूरी ख्वाइस, सपने, वादे

उम्मीद के साथ ज़िन्दा रहते

कोई सचाई या कोई यादे

सच के लिबास में सजा झूठ

क्या सही, क्या गलत,

ये वक्त़ खुद तय करे

वाजिब था या गैरवाजिब

बस जिन्दगी जिये या मरे

समय की पाठशाला में उम्र भर

सफलता पाने के सहारे

पत्थर बना खड़ा ही रह गया

और मंजिल से मंजिल भटक

नासमझ दूर तक चलता रहा

जिस्म पर उम्र की परछाई

बालों में सफेदी की चमक

आँखों से ओउझिल राहें

फिर भी हताश नहीं,

नाउम्मीद कियों भले

जो सही माना मन में

और समय के साथ चले

:-सजन कुमार मुरारका

 

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