गतिशीलता है जीवन का आभास !
समस्या के अस्तित्व के साथ बास;
चलनेवाले से ताप का होत विकास,
ताप रहित जीवन नहीं होता विश्वास!
जीवन-ताप को माने समस्या समान;
शक्ति करती नव निर्माण का समाधान ।
कभी बन जाती विकट,ध्वंस का सामान,
कभी प्रसूत करे नित नये सूत्र बिज्ञान !
प्रेरणस्रोत मूलरूप से होत अन्त-सलिला ,
दोष दूसरों को देते रहते,अन्दर का है रैला;
शरीर-कर्म का सद्पयोग न कोई झमेला,
ताप-शक्ति सहयोग स चले सारा खेला !
सटीक निर्णय की त्वरित शक्ति चाहिये,
समस्या से ताप समाधान की शक्ति बनाइये,
होगा समस्या का निदान निश्चित पाइये;
अपेक्षित ताप-शक्ति समन्वय होने चाहिये ।
जागृति मुख्य भाग है सम्पूर्ण जीवन का !
मन-वचन-कर्म सहज़ आधार परखने का,
स्वप्नावस्था में देखा सत्य होता भ्रम का;
जाग्रति स्वप्नको आभाष कहे मिथ्या का ।
समस्या जीवित अवस्था मे दीर्घ स्वप्न होता,
मन की सुप्त अवस्था से यथार्थ ही प्रतीत होता;
अवचेतन मदारी बन ,चेतन को नाच नाचता,
जिन्दगी को खिलाता खेल,स्वप्नवस्था मे रहता ।
यह प्रमाणिक है विफलता से जों भी घबराये,
प्रयास न कर पूरी तरह हताश,निश्चेष्ट हो जाये!
वास्तव मे माली खुद ही देत है खेत जलाये,
बीज़ बोये, सीचें,समय लगे, फ़सल उपजाये।
सुषुप्त-चेतना मे रहे अहम, अविद्या- विद्यमान-।
समाधिमे वासना सुप्त रहे,लुप्त होने का नहीं प्रमान;
चेतना से चिंतन करे, चैतन्य पूर्ण हो, मिटे अज्ञान!
अनुभव समस्या नष्ट करे,चिंतन देता समाधान !!
**सजन कुमार मुरारका **
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