सर्द हवाओं का यह मंज़र,
लहू को जमाता मौसम का असर;
नर्म हथेलियों पे शबनमी ओस,
खुश्क पीले पत्तों की सर-सर;
बर्फ़ बिखरते, बहता चुभन भर,
धुंध से घिरा रहता मौसम बदहवास ...........
शुष्क पड़ गए दहकते अधर,
कुआसा के बादलों का अंधकार
शाम की बैचेनी होकर उदास!
ढूँढती गर्म आग़ोश धीरे धीरे अगर;
रातें फैलाए सर्द साँस ठिठुर-ठिठुर;
ठंडा सा मौसम,रूह का शीतल एहसास ..........
अश्क जम गए दिल के आर पार,
खुश्क आँखों में ठहर गया इन्तज़ार,
बर्फ़ की तरह गहरा जमा विश्वास!
सर्द हवाओं का मंज़र होगा बेअसर,
चाहत की तपीस से गर्माएगा दिलवर;
मैं पिघल जाऊंगा,होगी जब तुम पास|
सजन कुमार मुरारका
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