Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सावन झरते नयन

 

सावन की रात ,तूफानी बरसात
नयनों से झरते नीर, बहे एक साथ
आँखों की पीढ़ा छिपाये दोनों हाथ,
सिसक-सिसक नीर झरे, जैसे बरसात |
घनघोर घटाओं में जब बिजली चमके ,
मन की दीपशिखा ढूँढें तुम्हे रोशनी लेके
ह्रदय का करुण आर्तनाद बिजली में कढ़के
बाहर में सावन,अन्दर पीढ़ा आंसुओं से छलके ||
विरह में बीती रात,कोकील जैसे भोर सवरे
गहन मन की शाखाओं परे,यादों के मारे
विरही केका कुहु-कुहु नहीं, तेरा नाम उच्चारे
भीगे-भीगे आँचल में सर्द-शीतल दिल तुम्हे पुकारे



-सजन कुमार मुरारका

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