Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"सेदोका"..एक नया प्रयास !!!(भाग -एक )

 

मन उदास
सिर्फ है एहसास
भूली बिसरी यादें
आशांये टूटी
बीत गई जवानी
जिंदगी की कहानी
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कल गुजरा
हर एक कल मे
खेल आने जाने का
समझो इसे
कल नहीं आयेगा
आज है ,कल होगा
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पड़ लिख वे
काबिल बनने को
घर कों छोढ़ चले,
रोटी के लिये
असहाय -जीवन
स्तब्द है अभिमान
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तुम्हारे साथ
बिताये हुवे पल
जला रहे हैं मुझे
तुम्हारे बिना
पलक बिछाये हूँ
काटे न कटे पल
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पंख चाहिये
देना कोई पैगाम
प्रियतम के नाम
उड़ जाऊंगा
मन में है बिश्वास
पंख अगर होते
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सजन कुमार मुरारका

 

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