सो-सो लफ्ज
लुटाया बेसुमार
एक लफ्ज काफी था
दिल की बात
अरमान दिल के
ज़ताने को था प्यार
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तेरा मिलन
बदन की खुशबु,
सीने मे हलचल
सासों की मस्ती
ढल गया आंचल
बुझाती नहीं प्यास
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दु :ख के बाद
सुख का है सफ़र;
स्वप्न भरी आरजू
जीने की आश
नादान दिल माने
जीता इसी बहाने
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बरसात मे
बादल अम्बर में
विरह नयन में
बरसे दोनों
एक मिले धरा से
एक गिरे धरा पे
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ब्याकुल मन
चिन्ता भरा संसार
दुःख करे बेकार
धीरज धर
मत्त का नहीं सार
प्रभु चरण धार
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विवेक द्वन्द
मन भटक रहा
दिमाग हार जाता
स्वार्थ-लालसा
बेशर्मी का तमाशा
जीवन परिभाषा
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धर्म का सार
वक़्त कैसे बदले,
सुख, दुःख, जलन-
ख़ुद में मग्न
नाउम्मीद ही मिले;
आ, प्रभु पैर तले
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सजन कुमार मुरारका
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