Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सोचता हूँ लिखूँ

 

तेरी मेरी राहें,जिसकी याद हमें है आती
हम ना होंगे,कोई बात नज़र नहीं आती
मैं ख़्वाहिशमंद हूँ,हर तारे का एक तारा साथी
मैं अकेला मेरा मन अकेला,जज़्बा-ओ-अहसास बाकी
तुम हो भी और नहीं भी यह प्यार की हक़ीक़त सखी
हैरान हूँ मैं दर पे नामाबर को पा कर
ग़मे-हयात को मैनें लफ़्ज़ों में पिरोया है
कल जाने क्या होगा, इस बेक़रारी में खोये हैं
मैं बीत रहा हूँ प्रतिपल, मेरा जीवन बीत रहा है
अब ये वहम दिल में और पल नहीं सकता
तुम्हारे हाथों की छुअन मैं हर पल चाहता
देखो, तुम ज़िद ना करो दोस्त कच्चे कान के
नहीं चाहिए ऐसा प्यार "निस्तब्ध" जीवन से
ओ बंजारे दिल आओ चलें अब घर अपने
आज मेरा मन उदास है मेरे गीतों की गलियों में
दुश्मन है क्या ऐ हवा जी सकने का आधार
ज़िन्दगी मेरे साथ-साथ चलना
अब मैंने पर खोल लिए हैं!
थामोगी या छोड़ोगी, मेरा हाथ ज़िन्दगी
कुछ पंछी ऐसे होते हैं जैसे पिंजरा और मैं,
सूरज और मैं, तुम क्षितिज बनो तो बनो
कर तुम्हारा पाने को, जाने क्या करना होगा
रात से सुबह तक मैं तुमको याद करूँगा
मैनें एक परी को मित्र बनाया
आपके सीधे पल्ले में ये दिल अटक गया
इक खिड़की की याद, गुच्छा लाल फूलों का
कल रात जब मेरी तुमसे बात हुई
तुम कल्पना साकार लगती
तुम बैठी ऐसी लगती हो अभिव्यक्ति
मन मरूस्थली,.याद बहार की आती
ये सावन के मेघ ,सावन गीत,बस इक बार
गरज तो रहे हो नभ, पर बरसोगे कब फुहार
बिना तुम्हारे दीवाली फिर क्या तोहार
प्रयत्न हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगें
आओ ज़िन्दगी एक बार गले मिल लें
आहत मन, विकृत शरीर दुख को तेरा दर याद रहे
मुझे कुन्दन बनने की चाह तुम हिम का एक कण
किसी ख़ामोश शाम को वो एक पल आया था
सोचता हूँ इस ही पर रोज़ इक कविता लिखूँ

 

 

:सजन कुमार मुरारका

 

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