मुस्कुराते लबों से, नज़र के झरोखे से ;
उँगलियों के बंधन से, बदन की खुशबू से,
गलों की लाली से,आलिंगन की गर्माहट से ,
तुम सिमटी हो मेरी बनकर, मेरे सीने से,
कभी बिखर-बिखर,कभी रूप की छटा समेटे ,
आभास देती हो तुम,अपनी देह मे जादू लपेटे,
जाने कितनी रातें बिताई, बदल-बदल करवटे ;
जिसे शुरुआत और अंत तक मेरी ही नींद उचटे,
तेरे माथे की बिंदी मेरे नयनो मे बारबार चमके,
बालों की घटा अंदेशा देती सावन भरे बादल के,
कजरारे नयन दोनों, मेरी बन्द पलकों मे दमके,
बदन से लिपटा आंचल ढाँपता, सारे ग़म मन के |
सजन कुमार मुरारका
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