Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम और मैं (प्रेमी )

 

तुम
तुम्हारी यादें
प्यार के वादें
लम्बी लम्बी बातें
और
मैं या तुम
अब जब साथ होते
बढ़ती उम्र
सफ़ेद बाल
के बीच
मोहब्बत खपाते
तुम्हारी सांसें
जिसकी खुशबू
मदहोश करती
अब थोड़े मे
उखड़ जाती
हम घबरा जाते
नीली आँखें
प्यार की प्याली
चश्मे से भी
धुन्द्ली देखते
झरने सी हँसी
निर्झर बहती
गृहस्थी की दलदल में
रुखी-सुकी सी पाते
तुम हो तो
यादें है
पुरानी तस्वीर सी
कभी कभी देखते
अगर न होते
थका-हारा सा
मैं होता
बिस्तर पर
सोते और सोचते
तुम होती तो
क्या होता
कैसे कैसे दिन होते
बिस्तर पर
साथ साथ सोते
थोड़ी सी बातें
फिर झगड़ते
पर दूरी
ना होती
और मैं होता
तुम होते

 

 

 

सजन कुमार मुरारका

 

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