Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम्हारी चिठ्ठी!

 

 

तुम्हारी
चिठ्ठी नहीं आई
उम्मीदों की
आँख थक गई
पहले-पहले
सोचा था
शायद तुम
गमगीन हो गई
अपने रिश्तों को
याद कर
बिरही सी
आहें भरती बेवस
या फिर
आँखों के अक्स से
बेज़ार,उखड़ती साँसों
को व्यवस्थित
करने मे परेशान
चाहकर भी
लिख नहीं पाई
परन्तु
जब मेरी चिठ्ठी
लोट आई,
तुम्हारे पते से
मैंने जाना
तुम्हे तो
लिख्नना ही न था
यह भी अच्छा रहा
मैंने तुम्हे लिखा
नहीं तो
आँखें पत्थरा जाती
राहे तकते
और तुम्हारी चिठ्ठी
नहीं आती
जैसे मेरी याद न आइ

 

 

 

सजन कुमार मुरारका

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