Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यों ही ..कुछ ...बात या बेबात, ऐसे ही !!

 

शाम हुई,दीये जले,तारे भी धीरे धीरे

परवाने निकले, रोशनी के दीवाने सारे

हुस्न का चढ़ता रंग,बेताबी चहरे के परे

रात ढलती, दूरियां मिटे,दोनों मिट जाते

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सूरज की पहचान ,रोशनी लिये घूमता

चाँद का भी कमाल, उधार पर मचलता

दिन मे निकले सूरज, दुश्मनी है रात से

चाँद पागल,लेकर उधार,निकले रात मे
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लम्बी जिन्दगी की दुआ जब मुझे मिले

सोच मे भीषण बवंडर आये होले -होले

जिन्दगी अब कांह जीते,यों ही काट रहे

जिसे काटना है,उसे फ़िर लम्बा क्यों खींचे

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ईश्वर,अल्लाह,जीसस जाने हम उनके सन्तान

हमे कम नहीं समझो, कसम है जगत पिता की

उनसे तुम भी,उनसे हम भी, और सब बाकी भी

वेवकुफ़ी है फिर खून से खून को धोकर मिटाने की

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वह हमे भूल जाये,यह बात होई नहीं सकती

भुलाने के लिये, हमे याद करना होगा ज़रूरी

तस्वीर मिटाने से पहले, तस्वीर थामनी होगी

वेवफाई बताने से पहले,वफाई जानना है ज़रूरी
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सजन कुमार मुरारका

 

 

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