Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सावन की घटा हूँ मैं

 

सावन की घटा हूँ मैं

घट-घट भर दूंगी।

सागर के अधरों को छूकर

 चहुंओर  निर्भय बरसूगीं।।


संजोये हूँ आस,सखी मिलन की

शिराओं की पीर टटोलूगीं।

पहूँच वसुधा के आंगन में

रिमझिम प्रीत घोलूगीं।।


ये है खबर मुझको

जेठ ने कितना सताया है।

धूसरित धरा के खातिर

मैं घूमरि-झूमरि बरसूगीं।।


होकर चपला मैं तो 

चंडी सी दहाडूगीं-चित्कारूगीं।

ठूंठ-कली-लताओं को

मां सी पुचकारूंगी-दूलारूंगी।।


पुरवा के संग,ओढ़ इंद्रधनुषी रंग

मैं क्यारी-क्यारी परसूगीं।

कण कण को कर हुलसित

 निडर मैं, घनघोर बरसूगीं।।

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#क्षात्र_लेखनी© @SantoshKshatra







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