writer : Shabana K Arif
Swa.Rgtd.no.203112 A TRIANGLE LOVE STORY
( COPY RIGHTS RESERVED WITH SHABANA K AARIF)
1578 से 1612 के दौर में जन्मी भागमती-क़ुली क़ुतुब शाह की प्रेम कहानी आज भी उसी दीवानगी के साथ जिंदा दिखती है...! चेंचलम (याकुतपुरा) की नर्तकी देवदासी भागमती को क़ुदरत ने धरती पे सुन्दरता की मूर्ती बना कर भेजा था...और भागमती को अपनी सुन्दरता पे गर्व भी था...चेंचलम का हर अमीर जिसने उसे एक बार देखा उसे पाने के ख्वाब देखता था...उसका नृत्य और गाना सुनने लोग दूर-दूर से आते थे और उसके हुस्न की अदाओं पे दौलत लुटाते थे...इसीलिए अक्सर औरतें उससे जलन रखती थीं…जब भागमती अपने दो घोड़ों की बग्घी पे महारानी की तरह निकलती थी तो औरतें उस पे अपनी भड़ास निकालती थीं लेकिन...भागमती बड़ी शालीनता के साथ उनकी जुबानें बंद कर देती थी...! और भागमती की ज़िन्दगी का सच सिर्फ उसे पालने वाली शिव भक्त, बूड़ी रमैय्या माई जानती हैं जिनकी आँखों में उसके लिए घृणा सुनकर दुःख के आंसू बह निकलते हैं, उन्हें याद आते हैं वो दिन , जब बे-औलाद इस बूढी नाचने वाली रमैय्या के सामने उसकी मालकिन और भागमती की माँ देवदासी माधवी बाई मंदिर के बाहर नृत्यांजलि अर्पित करती थी और 10 वर्ष की भागमती उनके साथ नृत्य करती थी, लेकिन मंदिर की आरती करने की देवदासियों को अनुमति नहीं थी...तब भागमती आरती के लिए बहुत रोती थी, माँ से जिद्द करती थी माँ का कलेजा फट जाता फिर भी नियमों से मजबूर उसके आंसू पौंछ देती...वो बच्ची सब से कहती फिर भी किसी को दया नहीं आती थी...दया आती थी तो सिर्फ मंदिर के पुजारी बाबा को...लेकिन बड़े लोगों, सभासद के आदेश के सामने चुप रह जाते थे...कई बार वो लोगों के लिए सेवा भाव रखने वाली, लोगों के दर्द में तड़पने वाली, बाहर खड़े भक्तों को दूर नदी से मटकों में पानी लाकर पिलाने में ख़ुशी पाने वाली भागमती के लिए, मंदिर सभासद से विनती करते थे उसे महाआरती में मंदिर के गर्भ गृह में जाने की अनुमति दे दें...लेकिन नाचने वाली देवदासी की बेटी कहकर कोई अनुमति नहीं देना चाहता...!
माँ माधवी, मरते समय भागमती को रमैय्या के हवाले कर गई...और भागमती की जिद्द और अधिकारों के लिए लड़ने से रोकने की हिदायत भी दे गई थी रमैय्या को...लेकिन ये हो नहीं सका..! निसंतान रमैय्या ने उसे औलाद समझ के पाला...मुगलों और गोलकुंडा के सैनिकों के आये दिन ज़ुल्म और कहर से उसे बचाया...और इसमें रमैय्या की मदद की ख्वाजा (किन्नर ) ने जो भागमती से सिर्फ 8 साल बडा था मगर मुगलों का सताया हुआ...उसने हसीन भागमती को एक योद्धा बनाया...भागमती, मुग़ल और सुल्तान के सैनिकों से बचपन से चेंचलम की रक्षा करती रही...लोगों के नाचने वाली की बेटी कह कर दुत्कारने के बाद भी उनके आंसू पौंछने ज़रूर जाती...इसे मानव धर्म कहती...रमैय्या के साथ नागा मालेश्वर के मंदिर से दूर बैठी दूसरों की तरह अन्दर जाने को जिद्द करती, लेकिन वैश्या की पाली इस बेटी को रमैय्या के साथ अन्दर प्रवेश की अनुमति नहीं मिल सकी... रमैय्या ने भी बहुत कोशिश की लेकिन एक दिन महा आरती के बाद मंदिर जाने के लिए लड़ पड़ी 12 वर्ष की थी भागमती, किसी से डरी नहीं उलझ गयी...और फिर शिव को ही ललकार कर बाहर ही हठयोग लेकर बैठ गई...फिर भी इजाज़त नहीं मिली पूजन में शामिल होने की...और उस दिन ऐसी दुर्घटना हुयी की महापूजा की आरती का दीया बुझ गया, शिव की मूर्तिगायब हो गई..ये देख पुजारी जी बेहोश हो गये...सभी डर गए...और तब सपने में साक्षात् शिव ने पुजारी जी से भागमती की भक्ति और प्रेम का अपने प्रति प्रमाण दिया था...और शिव स्वयं बाहर आकर भागमती का हाथ पकड़ कर गर्भगृह में लेकर गए झूम के नाची थी 12 साल की भागमती...उस दिन से देवदासी भागमती के नृत्य बिना महापूजा नहीं होती...!
तब से अपनी स्वर्गीय माँ की तरह पारिवारिक देवदासी प्रथा के चले आ रहे शिव के वरदान नृत्य को ही उसने अपनी जिंदगी बना लिया...परिवारों के उत्सवों में भी नृत्य के लिए जाने लगी और जीवन अर्पित कर दिया नृत्य के नाम...बड़ी होती भागमती ने घर में भी कोठा खोल लिया, लोगों का दिल बहलाने के लिए घुंघरू खनकने लगे भागमती के...बड़े-बड़े रजवाड़े अमीर उसे अपनी दासी बनाने की परम्परा के लिए रमैय्या के सामने पैसों का ढेर लगाते रहे, लेकिन भागमती ने इस परम्परा को स्वीकार ही नहीं किया वो तो सिर्फ अपने नटराज की दासी थी...नृत्य उसका धर्म था इसमें उसे कोई शर्म नहीं, किसी से कोई डर नहीं, पूरी वीरांगना की तरह जीती रही, मर्द उसके हुस्न पे मरते मगर शरीर छू सकें इतनी हिम्मत किसी में हुयी तो भागमती ने उसे ज़मीन दिखा दी...!
दूसरी तरफ गोलकुंडा में क़ुतुब शाही डायनेस्टी के 4th सुल्तान इब्राहीम के बड़े बेटे क़ुली क़ुतुब शाह (like anil kapoor film “BETA) इससे अलग बेहद शांत,होशियार, जंग से नफरत करने वाला...मगर दिलेर...भाइयों के लिए हर बार अपनी खुशियां भूलने वाला..अम्मी-अब्बा हुजुर को जन्नत का रास्ता समझता है...कमजोरों को मुआफी दिलाने वाला होशियार...इंसानियत को सबसे बड़ा मज़हब समझने वाले शहजादे क़ुतुब से बाप सुल्तान इब्राहिम को ख़ास मोहब्बत थी...जो चाचा मीर शाह के दिल में खंजर की तरह चुभती थी...क्योंकि वो खुद सुल्तान बनने का ख्वाब देखता था...इसलिए दुसरे भाईयों के साथ मिलकर क़ुतुब को शेर के सामने डाल कर मारना भी चाह लेकिन उल्टा भाई शेर के शिकार हो गए, इनकी साज़िश से अनजान शहज़ादे क़ुतुब ने हादसा समझ शेर को मार कर भाईयों को बचा लिया...! ऐसे ही बहादुरी के कारनामों से सुल्तान इब्राहीम का उसके लिए बढ़ता प्यार शातिर मीर शाह के लिए उस वक़्त राहत बन गया जब उसने अपनी इकलौती बेटी शाज़िया के दिल में क़ुतुब के लिए जन्म ले रही बचपन की मोहब्बत को देखा..और खुद सुल्तान बनने और क़ुतुब को अपने दामाद की शक्ल में देख नफरत छोड़ उसके करीब आ गया...लेकिन फिर भी क़ुतुब की इंसानियत, रिश्तों की मोहब्बत और उसके शायरी, संगीत के शौक़ को बदल नहीं सका...!
भागमती की माँ बन चुकी बूढी रमैय्या पुरानी यादों को बार-बार याद कर अपने आंसुओं को साफ़ करती आज भी देखती है कि लाख दर्दों को सीने में दबाये हुए भी भागमती खुद को कमज़ोर नहीं होने देती...खिलखिलाती हंसती मुस्कराती अब भी बुरा-भला कहने वाली औरतों से कहती है....“मेरा घर नृत्य कला का मंदिर है और मंदिर में कोई भी भक्त आ सकता है हाँ, मेरे नृत्य को देख कर किसी के मन में पाप जन्म लेता है तो उसमें मेरा कसूर नहीं है अपने आदमियों के मन में जन्मा पाप दूर करना तुम्हारा धर्म है...अपने पत्नी धर्म को भूल कर मेरी कला को दोषी ना ठहराओ...” इसी भागमती का नाचने वाली से विपरीत एक दूसरा रूप भी है, जिसके लिए गाँव के गरीब-गुरबा उसे देवी का रूप भी कहते हैं...भागमती अपने नृत्य से कमाई दौलत गरीब बच्चों,बुजुर्गों और बे-सहारा औरतों में बाँट देती है...अनाथ आश्रमों में दान दे देती है...जिसे उसके अलावा सिर्फ तीन लोग जानते हैं...उसे शस्त्र विद्धा सिखाने वाले उसके उस्ताद, दोस्त, हमदर्द किन्नर ख्वाजा बानो,दूसरी माँ जैसी बूढी माई रमैय्या और तीसरे पिता समान, नागा मलेश्वर मंदिर के पुजारी बाबा...भागमती नागा मलेश्वर के मंदिर की सबसे बड़ी भक्त है वो खुद को शिव की देवदासी मानती है...इसी मंदिर के पुजारी बाबा उसे बेटी सामान मानते हैं, उन्होंने उसके नृत्य में साक्षात शिव और गायन में सरस्वती का वास महसूस किया है...वो उसकी आत्मा और शरीर की पवित्रता के साक्षी हैं...इन्ही पुजारी बाबा के कारण आज मंदिर की हर बड़ी पूजा भागमती के नृत्य और आरती के बिना नहीं होती...क्योंकि यौवन पाते ही एक समय फिर आया था जब उसके रूप यौवन के दर्शन में पागल हो रहे पुरुषों के कारण उसके मंदिर में प्रवेश के लिए द्वार बंद कर दिए थे...ये ज़मींदार,सरपंच और उनके वो समर्थक थे जो भागमती के सपने देखते और कोठे पे दौलत लुटाया करते थे लेकिन उनकी वासना पूरी करने की कोशिश को भागमती ठोकर मार चुकी थी, भागमती की दिलेरी से टकराने और गाँव में बे-इज्ज़त होने की उनमे हिम्मत नहीं थी....इस बार फिर अब जवान हो चुकी भागमती ने उन्हें सबके बीच उनकी औक़ात दिखायी थी...तब इन्ही पुजारी बाबा ने उसकी पवित्रता का प्रमाण दिया था और याद दिलाया था की भागमती के चरण मंदिर में रहें यही शिव की इच्छा है...और उसे फिर से मंदिर में प्रवेश दिला कर, पूजा-आरती के अधिकार दिए थे...! आज तक वही सिलसिला चल रहा है...हालांकि विरोधी गाहे-बगाहे आज भी खड़े हो जाया करते हैं लेकिन भागमती उनकी बोलती बंद कराना जानती है...और बे-खौफ़ मंदिर में आये हर व्यक्ति को अपने हाथ से प्रसाद देती है और प्यासों को पानी पिलाती है...दूसरों के दर्द को अपना समझने वाली भागमती उन लोगों को भी प्यार करती है जो उससे और उसके पैसों से घृणा करते हैं...भागमती उन्हें भी दूसरों के ज़रिये पैसा भेज कर उनके घरों के चूल्हे बंद नहीं होने देती...फिर भी जब वो आलीशान घोड़ों की बग्घी में निकलती है तो नफरत करने वाली औरतें मुंह फेर लिया करती हैं...तब भी भागमती उनसे मज़ाक़ करती निकल जाती है...क्यूंकि वो जानती है कि ये औरतें उससे नहीं उसके नाच से घृणा करती हैं...ये बेचारी नहीं जानती कि मेरा नृत्य मेरे नटराज मेरे शिव की भक्ति है उनका वरदान है...!
भागमती से 2 साल छोटे क्लासिकल सिंगर,पोएट, गोलकुंडा के शहज़ादे क़ुली क़ुतुब शाह को एक दिन शिकार में भटकते हुए ज़ख़्मी हालत में भागमती के घुंघरू और गाने की आवाज़ ने उसके कोठे तक पहुंचा दिया...नज़र मिली और जैसे सब कुछ भूल गया शहज़ादा उसकी खिल-खिलाहट में...! भागमती ने उसके ज़ख्मों को भरा और क़ुतुब ने उसे दिल की धड़कनों में भर लिया...जब भागमती ने जाना वो शहजादा है तो तलवार रख दी सीने पर...मार नहीं सकी लेकिन, फिर कभी ना आने का हुक्म दे दिया...मगर क़ुतुब को तो मोहब्बत हो गई थी...वो उससे मरने को तैयार थे...मुसी नदी को पार कर रोज़ आते...क़ुतुब की भाईचारे और इंसानियत की सोच ने उसके मरहूम सुल्तान चाचा जमशेद शाह के चिचलम को दिए ज़ख्मों को भुला दिया और उसकी सच्ची मुहब्बत देखने के बाद आखिर भागमती भी अपने दिल को सम्हाल ना सकी...क़ुतुब की हो गयी...! आज भी जिंदा है हवाओं में ये मोहब्बत... भागमती की कल्पना पर बनी इस अमर मोहब्बत की निशानी “चारमिनार” उसके ख़्वाबों की जन्नत है...! गोलकोंडा को मुग़ल सल्तनत में मिलाने का ख्वाब देखने वाले अकबर की ख़ुशी के लिए मक्कार मुग़ल “आदम खां” ने हैदराबाद को कुचलना चाह मगर, क़ुतुब से शिकस्त खा बैठा, इसी बहादुर शास्त्रीय गायक शायर, शहज़ादे क़ुतुब की क़ाबलियत,इंसानियत,दिलेरी पर उनके पिता सुल्तान इब्राहीम उसमें अपना वली अहद, अपना वारिस देखते थे...इसीलिए क़ुतुब के दुसरे भाई उनसे जलन रखते थे...और चाचा वजीर-ए-आज़म (प्राइम मिनिस्टर) मीर शाह को भी क़ुतुब का हौसला उसकी बढती ताक़त कहीं ना कहीं अब भी चुभने लगती थी...क्यूँकी उसकी नज़र तो खुद सुल्तान बनने पर थी और क़ुतुब की ताक़त उसकी हसरत मिटा सकती थी...लेकिन उसे एक उम्मीद थी की क़ुतुब की मोहब्बत में दीवानी उसकी बड़ी हो चुकी खूबसूरत बेटी शाजिया से क़ुतुब का निकाह, क़ुतुब को उसके क़ाबू में रखेगा...इसलिए वो क़ुतुब की बढती ताक़त को रोकने और अपनी बेटी से क़ुतुब के निकाह के मंसूबे बनाता रहता है...जिसके लिए कोहेनूर हीरे के लालची तांत्रिकों से हीरा दिलवाने के वादे के साथ अपनी ताजपोशी के तंत्र-मन्त्र करवाता रहता है...मगर बचपन की साथी शाज़िया की दीवानगी,मीर शाह के तांत्रिकों की शक्तियां...और इन विरोधियों को आदम खां का साथ...और मीर शाह के बहकाने में आकर सुल्तान इब्राहीम भी एक नाचने वाली से बेटे क़ुतुब की मोहब्बत के खिलाफ सख्ती से खड़े हो गए...और कल के सुल्तान आज के चहेते शहजादे क़ुतुब को रोकने के लिए सज़ा-ए-क़ैद दे दी, फिर भी शहज़ादे क़ुतुब के सीने में भागमती के लिए इश्क़ का जूनून रोक नहीं सके...!
दूसरी तरफ़ शहज़ादे क़ुतुब के प्यार में पूरी तरह डूबी भागमती के घुंघरू की झंकार अब अपनी मोहब्बत की ख़ुशी के लिए होती है...उसके चाहने वाले जब रोज़ मायूस होकर लौटने लगे तो उन लोगों ने एक गैर धर्मी शहज़ादे के साथ रिश्ते को लेकर गाँव में उसके खिलाफ विरोध खडा कर दिया गया...तब भी भागमती सबके सामने इस प्यार को अपने शिवा का वरदान कहती है...और इस सच को एक बार फिर प्रमाणित करते हैं उसके पुजारी बाबा, किन्नर ख्वाजा और बूढी हो चुकी रमैय्या माई...लेकिन इस मोहब्बत की खबर से बिखरी शाजिया के लिए वजीर मीर शाह, सुल्तान इब्राहीम के साथ मिलकर एक बड़ी साजिश रचता है जिसमे सारे ऑर्थोडॉक्स अमीर, दरबारी और अवाम हिन्दू नाचने वाली के साथ शहजादे की मोहब्बत के खिलाफ खड़े हैं...तब सुल्तान इब्राहीम भी मीर शाह के इशारे पर उसे क़ुतुब की मोहब्बत को जुदा करने की आज़ादी दे देते हैं...जिसके तहत मीर शाह, बड़ी शान के साथ भागमती को बग्घी भेज कर क़ुतुब के नाम से महल में बुलवाता है...और भागमती साजिश से अनजान क़ुतुब की रानी बनने की खुशियाँ लिए गाँव से विदा होती है ये कहती कि उसका प्रेम सच्चा है देखो मुझे शाही बग्घी भेजकर बुलाया है...लेकिन महल में जश्न से पहले, सुल्तान के साथ मीर शाह, उसे एक नाचने वाली की औक़ात का अहसास दिला कर, क़ुतुब की ज़िन्दगी और मौत का फैसला उसके सामने रख देते हैं...और भागमती अपने प्यार को लम्बी उम्र देने के लिए सबके सामने प्रेम को भूलने और नाचने के लिए मजबूर हो गई...इस सारी साजिश से अनजान राज दरबार में सुल्तान इब्राहीम, शाज़िया के साथ अचानक क़ुतुब की सगाई का ऐलान कर जश्न में भागमती को नाचने के लिए खडा कर देते हैं...हैरान रह जाता है क़ुतुब...लेकिन भागमती अपनी मोहब्बत की जिंदगी की हिफाज़त के लिए झूम के नाचती है...मगर आंसूओं के साथ हिम्मत टूट जाती है और बेहोश होते हुए अपनी मजबूरी-बेबसी ज़ाहिर कर जाती है...अपनी मोहब्बत की ये तौहीन क़ुतुब बर्दाश्त नहीं कर पाते और अपनी जिंदगी भागमती को सबके बीच गोद में उठाये बागी होकर चल दिए...उनकी ये बगावत उन्हें सुल्तान इब्राहीम के हुक्म से क़ैद में डलवा देती है...और बेहोश भागमती को मीर शाह के हुक्म से मूसी नदी के पार फिंकवा दिया गया....क़ुतुब शेर की तरह बैचेन है क्यूंकि उसने दो रोज़ बाद शिवरात्रि की महापूजा के दिन भागमती की नृत्यांजलि में आने का वादा किया है...और वो जानता है कि उसके बिना भागमती के घुघरू झंकृत नहीं होंगे उसके शिव उससे रूठ जायेंगे और उसके साथ ऐसा नहीं होने देगा....अपने वादे के लिए क़ुतुब सैनिकों की लाशें बिछा कर भाग जाता है...और शायद सच्ची मोहब्बत की तड़प में उस दिन आसमान भी फट पडा भयानक तूफ़ान आया, लेकिन क़ुतुब को तो बस अपनी मोहब्बत से किया वादा निबहाने का जूनून था...रस्ते में पड़ने वाली मूसी नदी तूफ़ान में बेक़ाबू थी और चेंचलम में तूफ़ान से सबने भागते हुए भागमती को भी मंदिर से ले जाना चाह लेकिन वो नहीं गयी, जाकर बैठ गयी अपनी शिव को ललकारती, आज उसे भक्तों की परीक्षा लेने वाले शिव की परीक्षा लेना है...जबकि उसका क़ुतुब उसके लिए तूफ़ान का सीना चीरता बढ़ रहा है, उसका, मीर शाह के तांत्रिकों की उसे रोकने वाली जादुई काली शक्तियां से मुक़ाबला था जो क़ुतुब को नदी पार ना करने देने को आमादा था...फिर भी क़ुतुब बेहाल बदहवास नट नृत्य में अपने शिवा से क़ुतुब को मांगती बिखरी टूटी अपनी भागमती के पास पहुँच ही गया...ये मिलन शिव की ही लीला थी...सबने देखी शिव और सच्चे प्यार की भक्ति और शक्ति...सब नत-मस्तक थे...और तब क़ुतुब ने तूफ़ान में बर्बाद हो चुके चेंचलम को फिर से नया शहर बसाने और उसका नाम भागमती का भागनगर रखने का वादा कर लिया सबसे...!
मोहब्बत के लिए हुकूमत से बागी होने और तूफ़ान का सीना चीर के भी मोहब्बत को पाने के जज्बे को कामयाब करने में खुदा ने भी क़ुतुब का साथ दिया...ये अहसास सुलतान इब्राहीम को उनकी बेगम ने दिलाया था और अब भागमती से किया वादा पूरा कर जिंदा लौटे बेटे को देख कर पूरा यक़ीन हो गया...अब वो भी इस मोहब्बत को जुदा करने का गुनाह नहीं कर सके...वो क़ुतुब की मोहब्बत कुबूल करते हैं...और चेच्लम को भागनगर बनाने के क़ुतुब के वादे को पूरा करने में साथ देते हैं...तूफ़ान में मूसी नदी के टूटे पुल को भी एक मज़बूत पुल बनाने का हुक्म दे देते हैं...! इससे बोखला कर शाजिया पागलों जैसी हो गई...तब मीर शाह ने बेटी के लिए सुल्तान को खानसामे से ज़हर दिला कर मरवा दिया...बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा था उसने,फिर भी दोनों को अलग नहीं कर सका...क्यूंकि इस मोहब्बत को मिलाने का वरदान साक्षात् शिव ने दिया था भागमती को...ये मीरशाह नहीं जानता था...कई सारी साजिशों के बाद भी क़ुतुब सुल्तान बना भागमती से निकाह किया...भागमती ने अम्मीजान से राजमहल की हर शाही तहज़ीब सीखी...क़ुतुब ने तलवार बाजी के शौक़ को देख कर उसे पूरी तरह वीरांगना बना दिया...उसके जौहर के लिए उससे मुकाबले में लड़ाकू तलवार बाजों की नुमाईशें (कम्पटीशन) रखीं...मगर क़ुतुब का नाचने वाली के लिए इतना प्यार देख कर भाइयों ने उसे अवाम (पब्लिक) के बीच तवायफ ही समझा, जिसे क़ुतुब बर्दाश्त नहीं कर सका...भागमती के तलवार रोक लेने से उन्हें क़त्ल तो नहीं कर सका लेकिन हुकूमत से बाहर निकाल दिया...यही भाई नफ़रत लेकर आदम खां के साथ मिल गए...और जब आदम की बड़ी सेना से गोलकुंडा डरा हुआ था तब गर्भ से होते हुए भी भागमती ने औरतों की फौज बना कर आदम खां से जंग की और पैर उखाड़ दिए थे...भागमती की इस शख्सियत को देख क़ुतुब ने उसे हैदर महल (महल का शेर) नाम दिया था इसी पे हैदराबाद बना...फिर भी देशप्रेमी भागमती की हमदर्द बन कर शाजिया क़ुतुब की नज़रों से उसे गिराने और दूर करने की हर चाल खेलती रही...दोनों को दूर कर भी देती थी लेकिन ये दूरी हमेशा अपनी मुहब्बत भागमती पे लगे इलज़ाम को झूठा साबित करने के सबूत लाने तक होती थी और प्यार का ये यकीन देख कर भागमती उसके सीने में टूट कर बिखर जाती थी...इसी तरह शाज़िया हर बार नाकाम रही, एक बार वो उन अम्मीजान को मोहरा बना लेती है जो शाही तहज़ीब में घुल जाने पर भागमती के गीत गाती थीं उसे बहु बेगम नहीं बेटी कहती थीं...बेचारी शाजिया की चालों में ऐसी उलझीं कि भागमती के खिलाफ हो गयीं, ऐसी खिलाफ कि क़ुतुब को भी दुश्मन समझने लगीं...लेकिन जब सच जाना तो शाजिया की चाल से भागमती को बचा कर उसकी मौत अम्मीजान ने खुद ले ली...!!
देशप्रेमी, इंसानों से प्यार करने वाली भागमती को रियासत में फैली महामारी में अपने हाथों से अवाम की खिदमत करने, उनके दुःख बांटने के बदले में उनकी बीमारी मिल गई...और तब उसके बसाये खूबसूरत शहर हैदराबाद और उसकी हिफाज़त की कल्पना में चार खलीफाओं के साये में रखने वाली चारमीनार की ख्वाहिश क़ुतुब पर ज़ाहिर की...जिसका बनना शुरू हो गया...महल के ऊपर क़ुतुब की बाहों में वो चारमीनार बनता देखती रही, मौत करीब आती गई...क़ुतुब बेहाल होते गए...वो नागा मलेश्वर के मंदिर की इस सच्ची दासी की जिंदगी मांगने के लिए अपने हाथों से महापूजा कर प्रसाद और भस्म लेकर आये अंतिम सांसे लेती अपनी जिंदगी के जिस्म पे दीवाने से होकर भस्म लगाई प्रसाद खिलाया लेकिन उसकी भागमती “हैदरमहल” को सांसें नहीं मिल सकीं...वो अपने ख्वाबों की जन्नत चारमीनार की आखरी तीसरी मंजिल को देखती अपने क़ुतुब की गोद में उसके बहते आंसू पौंछती इस वादे के साथ सो गई कि...“वो क़ुतुब को छोड़ के कहीं नहीं जायेगी अपनी इसी जन्नत में रहेगी अपने क़ुतुब के साथ ता-क़यामत तक”...! अपनी जिंदगी से जुदाई का सदमा लिए क़ुतुब फ़क़ीर बन गए और चारमीनार में बैठ कर अपनी मौत का इंतज़ार करते रहे...कहते हैं तीसरी मंजिल पर आज भी क़ुतुब और हैदरमहल मोहब्बत के तराने गा रहे हैं...आज भी ये खुदाई मुहब्बत जिंदा है...!!
Note: writers Shabana k Arif (mumbai) Film aur Tv lekhak ke roop me jaane jaate hain..!
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