SWA. Rgstd.No. 225341
A True Triangle Love Story
Writers : Shabana K Arif
(COPY RIGHTS RESERVED WITH SHABANA K ARIF)
गिरधारी लाल और जमुना देवी के नाच-गाने और नट का खेल-तमाशे का धंधा द्वारका (Uttrakhand ) की गलीओं से ख़त्म हो चुका था, उनकी और उनकी 15 साल की बेटी लाजवंती और दोनों बेटों के लिए रोटियां भी छिन चुकी थीं...नाच-गाना, रस्सी पे चलना उनका पुश्तैनी काम था, लज्जो को तैयार किया जा रहा था, बेटे कलाबाजियां दिखाते थे लेकिन जवान लड़की का आकर्षण ना होने से खेल ख़त्म हो चुका था...और “कमबख्त सूखी सी लज्जो लोगों को रिझाने का आकर्षण पाने तक पता नहीं कितना और इंतज़ार कराएगी”, यही कह कर कोसी जाती और बाप की मार खाती कि, “कमीनी बेटी बन के जन्मी है तो बड़ी हो, तेरे कारण मेरे बेटे भी फाके कर रहे हैं तू मर खप गयी होती तो कुछ और करते”...यही सुनती थी,क्योंकि बेबस हो गई माँ जमुना की उम्र अब लोगों को नाच-गाने और रस्सी पे चल के रिझाने के काबिल नहीं थी...लाजवंती थी कि बचपना जाने का नाम ही नहीं लेता था...रस्सी पे चलना आज भी नहीं आया...गिर जाती थी...ढोलक और सारंगी बजाने वाला बाप गिरधारी कभी-कभी किसी भजन मंडली में ढोलक-सारंगी बजाने चला जाता था तो एक वक़्त का खाना नसीब हो जाता था...हालांकि मंडली वाले उसे दूर ही रखते थे क्योंकि वो सड़कों पे नाचने-गाने और नट के खेल-तमाशे वाली का पति है, इस सच को आयोजक जान ना लें इससे डरते थे...इसलिए कर्जा भी बहुत हो गया, एक रोज़ बनारस के एक दबंग कर्जे वाले से उसने कहा कि “कुछ ही महीनों की बात है, मेरी बेटी लाजो नाच और रस्सी के करतब में माहिर हो जायेगी, बस सारा कर्जा चुका दुंगा...ये क़र्ज़ वाला हरनाम बाबु था जो कर्जा देना जानता था तो वसूलना भी, उसने सुन्दर नाक-नक्श वाली दुबली सी सहमी, लज्जो को देखा तो समझ गया, कि इसकी खिलाई-पिलाई अच्छी हो तो बहुत पैसा देगी...हरनाम बाबु ने कुछ पैसे और देकर गिरधारी से खरीद लिया...पैसा देख बेटों के भविष्य के लिए माँ-बाप ने लज्जो को बेच दिया...दोनों छोटे भाइयों, माँ-बाप को छोड़ के वो नहीं जा रही थी...पूछती रही “मुझे क्यों दूर कर रहे हो अम्मा ! बाबा !! भाई !!! तुम मारोगे तो भी नहीं रोउंगी, कभी शिकायत नहीं करुँगी, अब रस्सी पे नहीं गिरूंगी,नाचूंगी..मुझे दूर मत करो”...मगर बिक गई, माँ का दिल रोता रहा और बाप ने सौतेलापन दिखा दिया...घसीट के भेज दिया हरनाम के साथ माँ के घर से कुछ ले गयी तो अपने देव मुरली वाले गिरधर की मूर्ति...हरनाम के हाथों खींच कर पहाड़ी पे ऊपर जाती बिलखती उम्मीद करती रही उसे वापस लेने आयेंगे तभी उसने देखा, शायद उसके दर्द से बिजली की कड़क के साथ बादल फटा और नीचे पानी का सैलाब माँ बाप को ले उड़ा...डरा हरनाम अपनी जान बचाता उसे लेकर भाग गया....रास्ते भर रोती अपने मुरली से बात करती रही, जिनसे हमेशा बातें करती थी तन्हा अपना घायल दिल चुप-चाप उन्ही को दिखाती रही थी लड़की के जन्म से मुक्ति मांगती रही, जो नहीं मिलनी थी, सो नहीं मिली, वो मासूम क्या जाने कि ये मुरली वाले भी औरत के लिए सिर्फ पत्थर की मूर्ति हैं...मगर लज्जो को उन पे भरोसा था..! रस्ते में हरनाम बाबु उसके दोस्त रसबिहारी की जीप जब एक ढाबे पे रुकी तो लज्जो ने भागने की कोशिश की थी...और बहुत बुरी तरह से मार खाई थी...हरनाम उसके साथी जीप में घर ले गए थे...उनका ख्याल ये था कि अभी घर का काम करेगी, अच्छा खाकर अंग खिल जायेगे तब खुद भी दिल बहलाएँगे और बेच के बड़ा माल कमा लेंगे...यही सोच के भदोंहीं में अपने घर बीवी-बच्चों के काम पे लगा दिया और नाम रख दिया रानी...जानवर से भी बुरा सूलूक होता था उस पर, बच्चा-बच्चा उसे मारता, इलज़ाम लगाता, लेकिन ना जाने क्यूँ, अचानक हरनाम के कॉलेज में पढ़ रहे बेटे केवल को उसे दर्द में देख कर हमदर्दी होने लगी, वो उससे बातें करने लगा...उसे माँ-बाप बहन के ज़ुल्मों से बचाने लगा,रानी को भी उसमे अपना हमदर्द दिखने लगा...हरनाम उसे जल्दी खिलने के लिए बीमारी के नाम खूब खाना खिलवाता...जब वो खिलने लगी और बत केवल की उसमे हमदर्दी देखी तो एक दिन बीवी से उसके चाची-चाचा के पास छोड़ने के नाम पे वहां ले गया जहां बनारस के होटल में ऐश कर उसे ख़रीदने वाली अमीरन जान को बुला लिया था...बड़ी होती रानी रास्ते में दोस्त के साथ हो रही बातों से सारी प्लानिंग सुन चुकी थी...दोनों एक ढाबे पे रुके थे इस बार सावधान थे दोनों...खाना खा के एक होटल पहुंचे जहां अमीरन जान अपने मुस्टंडे के साथ पहले ही हाज़िर थीं...खिली-खिली लज्जो को देख खिल गयीं...लेकिन हरनाम ने कह दिया कि एक साल लगाया है पैसा खरच किया है इसे कली बनाने में, सो इंतज़ार करो हमारा आते हैं, अमीरन ने उन्हें रोकते हुए कहा “कली की कीमत बाज़ार में ऊंची तब तक है जब तक वो कली है...अब तुम तय कर लो पैसा चाहिए या ये”...दोस्त रसबिहारी, अमीरन की कीमत सुन पगला गया और हरनाम बाबु को समझाया, दिल बहलाने को बहुत मिलेंगी...पैसा ले और छोड़...हरनाम ना चाहते हुए भी पैसा लेकर निकल लिया...अमीरन लज्जो को कसाई की तरह देखती खुश होती, बारिश भरी ख़ूबसूरत सुबह में अपने राजनैतिक कस्टूमर, शौकीन राजा चौधरी को phone से इनवाईट करती हुई बड़ी सी कार में बैठने जा रही थी कि, लज्जो उर्फ़ रानी भाग निकली, उसके साथी गजनी ने बड़ी मुश्किल से पकड़ा था, ये वो समय था जब बिग इंडस्ट्रियलिस्ट वसंत दीवान अपनी 25TH मैरिज एनिवर्सरी के दिन घर में जश्न की तैय्यारियाँ के साथ इंतज़ार करते परिवार को छोड़ के चले गए थे, उनकी कनाडा की फ्लाइट क्रेश हो गयी थी...आज उनका इकलौता वारिस, बेटा शिवम अपने पिता की मौत के सदमे से मौन हो गयी अपनी माँ हर्षिता दीवान के साथ बनारस के गंगा घाट की तरफ अस्थियाँ विसर्जित करने जा रहा था, उसके साथ उसके बॉडीगार्ड की गाड़ी भी पीछे चल रही थी...शिवम की नज़र बारिश में भागती और पकड़ी जाती, मार खाती रानी पे पड़ती है, वो ज़ुल्म देख बेखौफ होकर ललकारता सबको रोकता है और उन लोगों से लड़की को छुडाता है...लड़की रानी रोते हुए उसकी उसकी माँ से बच्चों की तरह लिपट कर उससे सारा दर्द कह देती है...और ये भी कि “ये मुझे मार डालेंगे...अमीरन का मुस्टंडा गजनी उन लोगों को जाने के लिए कहता है कि “मुंबई के हो यहाँ बनारस में टांग ना अडाओं...लेकिन बॉडीगार्ड और पुलिस को phone करता देख पहुंची हुयी हस्ती समझ के ठंडा पड गया...शिवम के ज़िद्द करने पे बड़ी रक़म देकर रानी को खरीद लिया जाता है...अमीरन इतनी बड़ी रक़म को देख रानी को बेच देती है...और फिर रानी को लेकर शिवम गंगा घाट पे अस्थियों का विधि-विधान के साथ विसर्जन करता है...उसकी माँ का प्यार पाकर थोड़ी ही देर में रानी को वो दोनों अपने से लगने लगे...शिवम उसके लिए मुरली वाले का रूप दिखने लगा और माँ यशोदा मैय्या...वो भी पूजन में अपनेपन के साथ शामिल हुई...शिवम पिता की मौत के सदमे से लगे मानसिक आघात में मौन हुई माँ को रानी के साथ कुछ अपनेपन से देखता है...उनके आंसुओं पे रानी के भी आंसू निकलते हैं और दोनों एक दुसरे के आंसू पौंछने लगती हैं...शिवम को बहुत अच्छा लगता है जैसे रानी उसकी माँ के लिए एक दुखयारी लड़की देवी की तरह आई है...शिवम उससे पूछता है कि तुम्हारे माँ-बाप के पास छोड़ आते हैं...लेकिन रानी रोते हुए बताती है की अब उसका कोई नहीं है बदल के फटने में सब बह गये अब वो वहाँ गयी भी तो फिर हरनाम आ के ले जायेगा...यही सोच के वो मना कर देती है...शिवम, रास्ते से रानी को कुछ अच्छे कपडे दिलाता है अपनी फ्लाइट से उसका भी टिकट कराता है और रानी उनके साथ मुंबई आ जाती है...घर में सब उससे नाम पूछते हैं...वो इतना बड़ा घर इतने बड़े लोगों में शोक्ड है, घर में बने आलिशान देवी माँ के मंदिर को देखने लगती है, आँखों से आंसू झलक आते हैं....देवि माँ को चुप-चाप आंसुओं में देखते हुए शिवम समझता है उसका नाम देवी है, और सब से कहता है इसका नाम “देवी” है और बस, अपने इस भगवान् के लिए वो लज्जो से रानी और अब शिवम की देवी बन गई...प्यार, अच्छा खाना खाती देवी अब पूरी तरह लड़की बन चुकी है...! शिवम का बहुत बड़ा परिवार है, चाचा तुलाराम दीवान उनकी दो पत्नियाँ...पहली पत्नी शिवांगनी बहुत बड़ा बलिदान किया था एक एक्सीडेंट में वो माँ बनने की शक्ति खो चुकी थीं...लोगों ने कहा लेकिन वसंत दीवान ने भाई तुलाराम की दूसरी शादी नहीं की...लेकिन अभी एक साल पहले दूसरी पत्नी भावना ने डीएनए टेस्ट रिपोर्ट के साथ जवान बेटे श्लोक और उसकी बीवी अवन्ती के साथ घर में आकर धमाका कर दिया की तुलाराम ने 23 साल पहले उनसे कोर्ट मैरिज की थी अगर एक्सेप्ट नहीं करोगे तो मैं कोर्ट से अधिकार लुंगी...वसंत दीवान ने इस बात के लिए तुलाराम को भी घर से निकल जाने का आदेश दे दिया था...क्योंकि शिवांगनी बहु ही हमेशा उनकी बहु रहेगी...तब शिवांगनी ने विनती करके उन्हें राज़ी होने के लिए मजबूर किया था...उसी के कहने से भावना के बेटे श्लोक को भी बिज़नस से जोड़ा था...ऐसी चाचियों के साथ बुआ केतकी और फूफा गिरिजा शंकर हैं...मगर आज एम्पायर बनाने वाले उसके पिता मर चुके हैं जिनका वो अकेला वारिस है...और पढाई की वजह से शिवम के पापा का बनाया एम्पायर उनकी मौत के बाद घर वाले ही चला रहे हैं...क्योंकि तुलाराम हमेशा वसत से जी के कहने पर यही कहते थे भाई साहब यही दिन है थोड़ा मस्ती में जी लेगा फिर तो बिजनेस सम्हालना ही इसे है...शायद, हाँ, शायद, सभी शिवम को प्यार करने के साथ उसकी माँ हर्षिता दीदी का बहुत ख्याल भी रखते हैं...मगर हर्षिता दीदी पति के गम में बीमार और भगवान् की भक्ति में डूबती चली गयीं, पर अब रानी के आने के बाद जैसे वो उनकी बेटी हो या सखी जो उसे रामायण सुनाती,उनसे बातें करती इसीलिए शिवम ने रानी को उनके साथ रहने और सोने के लिए कह दिया...हालाँकि घर वालों ने गरीब सी इस लड़की को सर्वेंट क्वार्टर में रखने के लिए भी कहा जो शिवम को रानी के लिए अच्छा नहीं लगा था...!
कॉलेज कम्पलीट कर शिवम अपने स्वर्गीय पिता के बिज़नस को उनकी कुर्सी पर बैठ कर सम्हालने लगता है...अभी तक देखने में ऐसा लगता था कि ये घर रामायण के केरेक्टर्स से भरा है हर कोई एक दुसरे के प्यार में बंधा है, लेकिन नहीं, सब महाभारत के केरेक्टर भरे हैं...उनमे माँ हर्षिता ही हैं जिनके दिल में पति की मौत के बाद भगवान् बस गए हैं...उन्हें अब सिर्फ राम नाम से मतलब रह गया है, देवी, माँ की देखरेख और उनकी खूब सेवा करती है...देवी जब भी अपने मुरलीधर की मूर्ति देखती है उस में शिवम दिखता है...अपने भगवान् और घर के सबसे छोटे बेटे के लिए, उसकी हर ख़ुशी के लिए एक पैर पे खड़ी रहती है और उसे खुश देख जैसे औरत बनकर जन्म लेने का दुःख अब ख़ुशी देने लगा है...उसकी माँ की सेवा शिवम को भी अच्छी लगती है,..लेकिन शिवांगनी को छोड़ बाकी घर की औरतों की आँखें टेडी होती हैं, क्योंकि उनके लिए दो कौड़ी की अनपढ़ शिवम के करीब पहुँचने की कोशिश कर रही है...वो उसे सबके सामने टोक भी देती हैं...कि शिवम का ध्यान रखने के लिए हम हैं दुसरे सर्वेंट हैं...उनकी इनटेंशन से अनजान शिवम भी उसे आराम में और खुशियों में देखना चाहता है...वो चाचा तुलाराम और उनकी दोनों पत्नियों अम्बदा,भावना और भावना के बेटे श्लोक उसकी पत्नी सम्भावना और बुआ केतकी की सोच से अनजान उनका सपोर्ट करता है...औरंतों की डांट से देवी की आँखें भर आती हैं...ये देख शिवम उस के आंसू पौंछता कहता है “ठीक है तुम चाहती हो मेरा काम तुम करो तो तुम ही करो...शायद तुम बोर होती होगी इसलिए मैं तुम्हारे लिए एक ट्यूटर रख देता हूँ...तुम पढो खूब पढो मेरी तरह भाभियों की तरह इंग्लिश बोलने लगो ठीक...! शिवम की इन बातो और इंस्ट्रक्शन पर घर वालों के कान खड़े होने लगे...दुसरे भाई भी औरतों की बातें सुन कर शिवम को समझाने लगे कि “देवी सिर्फ एक नौकरानी है तुम उसे इस तरह ऊंचा दिखाने की कोशिश करोगे तो दुसरे नौकर सर उठाएंगे”...तब शिवम ने सबके सामने कहा था कि “मैं देवी को यहाँ नौकरानी समझ कर नहीं लाया, घर की सदस्य है ये, इसीलिए उसे सर्वेंट क्वार्टर में नहीं रखा है वो माँ के कमरे में रहती है उनके साथ...!” ये बात सभी को खटकी थी, उस दिन से घर की औरतों में देवी के खिलाफ साजिशें शुरू हो गयीं थीं...शिवम, देवी को अपना और माँ का ख्याल रखता देखता है और खुद उसकी हर ख़ुशी देते हुए उसे इंग्लिश के मीनिंग याद कराते हुए ना जाने कब देवी, शिवम की ख़ुशी, उसकी ज़रूरत बन गई, उसकी फ़िक्र बन गई और जब महसूस किया तो समझ ही नहीं पाया लेकिन जब अपनी हालत एक डॉक्टर दोस्त से कही तो उसने बताया कि उसे देवी से प्यार हो गया है...तब शिवम ने भी महसूस किया कि घर वालों की देवी के लिए ज़रा सी खिलाफ बात भी उसे इर्रिटेशन क्यों देती है...उसकी आँखें हर वक़्त देवी को सामने देखना चाहती हैं...खुली आँखों के ख्वाबों में भी देवी नज़र आती है और नींद ना जाने कहाँ है...ये बात वो देवी से कहता है...कि “क्या तुम्हें मैं भी ख्वाबों में दिखता हूँ, क्या मेरी तरह तुम्हारी नींद भी मेरे पास है...आँखों में आंसू भर कर देवी कहती है “पैरों की धूल कभी सर का मुकुट नहीं होती मैं ऐसे बड़े सपने नहीं देख सकती...इतना जानती हूँ मेरे मुरली वाले बिलकुल आप जैसे ही होंगे...!” उसकी बात सुन शिवम ने कहा...“मैं तुम्हें ये हक देता हूँ, तुम ख्वाब देखो तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए मेरी तरह अहसास परेशान करे...आँखों में नींद हो और नींद आसमान में चाँद के पीछे छुप कर मुंह चिढाने लगे तो अपनी वो हालत मुझे बताना,,,मैं उसे दिल में रखूँगा सम्हाल कर...और शिवम उसे यकीन दिलाता हैं...कि जिस दिन तुम मेरी तरह मुझे महसूस करोगी उस दिन ज़िन्दगी में रूह बन कर हमेशा के लिए मेरी होगी...ये वादा है तुम्हसे शिवम का...जाते हुए शिवम से उसने पूछा...ऐसा क्यों कह रहे हो आप...तो शिवम ने उसे देखते हुए कहा...“क्यूंकि मुझे तुमसे मुहब्बत हो गयी है...तुम्हारी हंसी तुम्हारी आँखों में छुपे खामोश दर्द के निशान देखते रातों में नींद नहीं आती...कमबख्त नींद तुम्हारे पास रूठी बैठी है...लेकिन जब तक तुम ना कहोगी मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूँगा, ना ही तुम्हारे सम्मान में कोई कमी आएगी...क्यूंकि प्यार दो दिलों से होता है....उम्मीद है तुम्हारे मुरलीधर ने तुम्हें मेरे लिए भेजा है तो तुम्हारे दिल में भी मेरा प्यार जन्म ज़रूर लेगा...तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूँगा...shocked देखती रह गई थी देवी...! उस दिन शिवम ने घर में सब को बुला कर ये कह दिया कि देवी इस घर में वही हैसियत रखती है जो मेरी है माँ की है आप सबकी है...सभी शोक्ड थे, लेकिन शिवम का आदेश था सो देवी का रुतवा ही बढ़ गया, हर नौकर घर वालों की तरह उसकी खातिर में लग गया...लेकिन ये हाल दूसरी औरतों के लिए तकलीफ ज़दा था और इससे निपटने के लिए साज़िशों ने अपने तीर तरकश पे कस लिए थे छोड़ने की तैय्यारियाँ थीं...तीर छूटे, लेकिन शिवम पर मुहब्बत इस कद्र हावी थी कि हर चाल उलटी होती चली गयी...देवी को देवता के पैरों की धूल से उसके प्यार को आत्मा तक पहुंचाने में कई बार टूटना पडा, बहुत वक़्त लगा...आखिर, शिवम की निस्वार्थ मुहब्बत के सामने देवी शिवम की हो ही गई...शिवम ने सारे परिवार को बताया, शिवान्गनी को ख़ुशी थी, लेकिन बाकी सबने विरोध किया, आखिर माँ हर्षिता दीदी ने देवी को बहु स्वीकार कर सबके मुंह बंद कर दिए...तब किसी के ना चाहते हुए भी पूरी शान-ओ-शौक़त के साथ दोनों की शादी हुई...अब वो शिवम की बीवी थी...मगर सब की दुश्मन...वो नहीं जानती थी कितना बड़ा तूफ़ान उनकी जिंदगी को किस किनारे पे फैंकने वाला है...वो शिवम के साथ स्विट्ज़रलैंड के लिए हनीमून पे निकलती है,दूसरी तरफ रानी को अब भी याद करने वाला हरनाम का बेटा केवल, शिवम की कंपनी में मार्केटिंग एक्सीक्युटिव की पोस्ट पे आता है, उसे आज भी यकीन है कि एक रोज़ उसकी रानी उसे मिलेगी...और रानी उसे मिली, जब अपने बॉस शिवम को हनीमून की बधाई देने स्टाफ के साथ एअरपोर्ट पहुंचा...और सबके लिए देवी बनी रानी को बॉस की बीवी देख shocked रह गया...उसके ये रिएक्शन तुलाराम के बेटे श्लोक ने देख लिए...और तब दूसरी तरफ बिज़निस पे नज़र जमाये घर वालों ने एक बहुत खौफनाक खेल खेलने की कसम खाई...सबके निशाने पर सबसे पहले थी देवी...तूफ़ान आया, उस वक़्त जब देवी,लड़की के जन्म के अभिशाप को भूल कर, जिंदगी के हर पल में खुशियों से भर गई औरत होने के एहसास से झूमती, मुरली वाले को धन्य कहती जीने लगी थी...श्लोक ने केवल को मोहरा बनाया...मगर श्लोक भी शायद नहीं जानता था कि केवल (शाहरुख़ खान, फिल्म अंजाम) मास्टर माइंड लड़का है...श्लोक की फॅमिली अगर उसे करोड़ों देकर यूज़ कर रही है तो वो उन्हें यूज़ कर अपनी मोहब्बत को हासिल करने का टारगेट उनके पैसों से पूरा करना चाहता है...वो देवी से मिलता है...उसे अपनी मुहब्बत याद दिलाता है...लेकिन देवी उसे खुद से दूर करना चाहती है...देवी से ये नफरत उसके दिल में ये एहसास बैठा देती है कि अमीर शिवम के लिए वो उसके प्यार को एक्सेप्ट नहीं करना चाहती तब वो फैसला करता है कि अब शिवम की उलटी गिनती शुरू होगी...वो गिरेगा और देवी मेरी होगी...इसके लिऐ केवल देवी से सॉरी कहकर दोस्त बन गया...और घर वालों के साथ शिवम की ज़िन्दगी से चले जाने के लिए करोड़ों का ऑफर रखवाता है देवी क सामने...ऐसे प्रोपोज़ल का पूरा मतलब ना समझते हुए भी देवी ने प्रपोजल ठुकरा दिया...जिसके लिये उसका जीना हराम हो गया...और ये शिवम ने महसूस किया जब तक वो पूरी तरह समझ पाता....तभी एक थपेड़े ने देवी से सारी खुशियाँ छीन लीं...तुलाराम, श्लोक को बिजनैस मे कई सैपरैट प्रॉफिट के साथ केवल ने उनका विशवास जीता और फिर श्लोक का दोस्त बन कर, देवी का दोस्त रहते हुये...घरवालों से एक पार्टी रखवाई, उसमे देवी को नचवाया वो ख़ुशी में झूम के केवल के साथ नाची, भूल गई कि वो नट की, सड़क पे नाच तमाशे दिखाने वालों की बेटी है...पार्टी में उसके खरीददारों को बुला लिया गया...सबके बीच सड़क पे नाचने गाने वालों की बेटी साबित कर केवल का प्यार उसकी मंगेतर साबित किया गया...हरनाम,अमीरन जान ने उसके चरित्र को भी दागदार कह दिया और केवल रोता हुआ शिवम से अपने प्यार की भीख मांगने लगा...शिवांग्नी माँ हर्षिता हैरान थीं क्योंकि आज केवल के साथ मिलकर उनके अपनों ने केवल के पिता हरनाम और अमीरन जान को बड़ी रकम देकर ये साबित करा दिया कि हरनाम ने लज्जो उर्फ़ रानी उर्फ़ देवी को पैसा लूट्ने के लिये इस घर में प्लांट किया था...देवी बिलखती कहती रही कि “ये झूठ है सच यही है जो शिवम को मालूम है वो तमाशा दिखाने,नाचने वालों की बेटी है लेकिन केवल से उसे प्यार नहीं, उसकी जिंदगी तो उसके मुरलीधर उसके शिवम के लिए हैआज भी जब मुरलीधर को पूजती है तो शिवम की सूरत दिखती हैं..”...फिर भी साज़िश के भंवरों में फंसा शिवम जो अब तक देवी क खिलाफ अपनों के इरादों को जान चुका था...वो देवी पर अपने यकीन को टूटने नहीं देता और अपने प्यार,अपनी ज़िंदगी, अपनी देवी को बचाने के लिए उसके सामने एक ही रास्ता था, तलाक, डिवोर्स...हालात से टूटा बिखरा शिवम अपना ज़ख़्मी दिल अपनी देवी को दिखा नहीं सका...लेकिन देवी की खुशियों के लिए तलाक़ देकर दूर कर दिया मगर, जायदाद का कुछ हिस्सा और दूर एक बंगला दे दिया...दर्द से भरी मोहब्बत के “दूर हो जाओ मुझसे” शब्द की लाज रखनी थी देवी को...इसके बाद कुछ नहीं बोला शिवम...उसके जाने का दुःख था तो मौन हो गयी शिवम की माँ और तुलाराम की पहली पत्नी त्याग की देवी चाची शिवांगनी को...विदा होते हुए देवी ने बहुत कोशिश की, लेकिन शिवम अपने होंठ सी चुका था...तब देवी जो उसकी ख़ुशी चाहती थी, उसकी ख़ामोशी के साथ देवी इस एहसास को लिए दूर हो गई कि शिवम के प्यार ने ही उसे औरत के जन्म की महानता का एहसास दिया था...प्यार में मिटना सिखाया था...शिवांगनी ने देवी के साथ घर और रिश्तों को त्याग दिया...लेकिन कुछ दिन बाद अपने प्यार, देवी की जिंदगी बर्बाद करने में साज़िश का हिस्सा बने “केवल” को तो अपनी रानी को पाना था...उसे अपने किये का पछतावा नहीं था उसके लिये जंग और प्यार में सब जायज़ है...तब वो देवी का साथी बन कर शिवांगनी के सामने रो-रोकर देवी की जिंदगी में खुशिया लौटने का वादा करता है, और शिवांगनी के साथ देवी को बताता है कि शिवम से उसके अपनों, तुलाराम एंड फॅमिली ने सब कुछ छीन कर उसे पिता के गाँव वाले उस टूटे से घर में पहुंचा दिया है जहां से उसके पिता ने जिंदगी का सफ़र तय किया था...केवल शिवम के लिये देवी का साथ देना चाहता है लेकिन देवी को उसका साथ मंज़ूर नहीं...तब शिवम की देवी, शिवांगनी के साथ उसी “बसंत विला”में महादेवी का रूप धर कर आती है, अपने पेट में पल रही शिवम के प्यार की निशानी के साथ...सभी शोक्ड रह गए, क्योंकि शिवम का वारिस देवी के गर्भ में होगा किसी ने सोचा ही नहीं था...और फिर उष्मन बनाई अपनों के कितनी ही ज़ख्म खाकर भी टूटी नहीं बल्कि अपनी सारथि बनी शिवांगनी के साथ अपने प्यार से छीनी गई उसकी हर एक चीज़ और जुदा रिश्ता भी वापस लेती है...लेकिन इस लड़ाई जीत कर भी दुश्मनों की साज़िश में पेट में पल रही प्यार की निशानी खो देती है, ये एक माँ के लिए बहुत बड़ा आघात था जिसे शिवम का प्यार ही उबार सकता था लेकिन,आघात-दर-आघात से बिखरा शिवम मानसिक बीमार हो चुका है, महादेवी बन चुकी देवी के सामने जिंदगी फिर चुनौती बन के खड़ी थी और उसे पाने के लिये पागल हुआ साज़िशों मैं माहिर केवल उसका अपना बनकर अब भी साथ था...उसका मकसद अब भी उसकी रानी थी...और अपने तुलाराम की फॅमिली रोते फटेहाल फिर घर में आ गये थे...फिर साजिशों के जाल थे लेकिन महादेवी को अब फिर विजय पानी थी...! क्योंकि अब ये औरत, ठोकर खाकर टुकड़े-टुकड़े जिंदगी जीते हुये, सच्चे प्यार में बनी वो पूर्ण औरत थी, जो लाजो से रानी और रानी से देवी की यात्रा में जन्मी महादेवी बन चुकी थी...!
This is original story
Author : Shabana K Arif
Film & TV show writer's
mumbai
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY