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स्वतंत्रता की आग में जले थे अंग अंग

 

कविता


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SHAILENDRA DEEPAK 

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to me 


    घनाक्षरी


स्वतंत्रता की आग में जले थे अंग अंग,
           आज तक हमको निशानी याद आती है।
भारती की आन पर जान को लुटा दिया है,
              रणबांकुरे की जिंदगानी याद आती है।
मांगती है शौर्य की मिसाल जब दुनिया तो,
             क्रांतिकारियों की कुर्बानी याद आती है।
अत्याचार देखता हूं हिंद की धरा पे जब ,
                बार-बार हिंद की जवानी याद आती है।

देश की अखंडता है खंड खंड होती जब, 
          वीर बांकुरों का स्वाभिमान याद आता है ।
डालता हूं दृष्टि जब भारती की अस्मिता पे,
              वंदे मातरम  राष्ट्रगान  याद  आता है ।
देश का तिरंगा जब उड़ता है आसमान ,
          लाडलों का फिर बलिदान याद आता है ।
 कविता के लिए जब लेखनी संभालता हूं।
             बार-बार मुझे हिंदुस्तान याद आता है।

कितने भी रूप अब हमसे बना ले कोई,
             एक बार देख हम उसे पहचानते ।
पढ़ता है विश्व चाहे प्यार का ही पाठ पर,
           प्यार हम जानते हैं क्रोध हम जानते ।
बांधते हैं सिंधु पर कभी हम सेतु और ,
         कालिया के कभी हम फन पर नाचते ।
भारती का शौर्य क्या बताएं बार-बार हम,
         धरती भी नापते हैं ब्रह्मांड हम नापते ।

वीरता का वटवृक्ष नभ से भी ऊंचा यहां,
       चाहते हो जितना भी आप चढ़ लीजिए ।
 सैकड़ों कदम यदि आप ने बढ़ा दिया तो ,
         एक  पग  बस आप और बढ़ लीजिये ।
शांत रस प्रेम और ओज की भी धार यहां, 
          चाहते हो जैसा आप स्वर मढ़ लीजिए।
ढूंढना है शौर्य की मिसाल यदि आपको तो ,
         एक बार हिन्द इतिहास पढ़ लीजिए  ।
    


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