Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

महालक्ष्मी व्रत

 

https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTmvtz6AVv5BYUQ1iVubGmxSWsd6lgVXgZrZ05L30g9h9vZEzno                                                                     https://encrypted-tbn1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSJRI-pEGXHsCn3obYO6py0EN2_Q_hDNWB2TvKvKInBxBJkuibs                                                                                                                                                                                                                                महालक्ष्मी व्रत                                                                                                                                आज महालक्ष्मी व्रत है. आम बोलचाल की भाषा में इसे हथियापूजन के नाम से जाना जाता है. शास्त्रों और पुराणॊं में इस व्रत का बहुत महत्व बताया गया है. इस व्रत के अनुष्ठान करने वाले अपनी कामनाओं ही नहीं अपितु धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं. जिस प्रकार तीर्थों में प्रयाग, नदियों में गंगाजी श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार व्रतों में यह महालक्ष्मी-व्रत श्रेष्ठ है. इस दिन मिट्टी का हाथी बनाकर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है.

            कथा:-एक लोककथा के अनुसार एक राजा की दो रानियां थी. बडी रानी से अनेक पुत्र थे,परन्तु छोटी रानी से एक ही पुत्र था. बडी रानी ने एक दिन मिट्टी के हाथी की प्रतिमा बनाकर पूजन किया, किंतु छॊटी रानी इससे वंचित रहने के कारण उदास हो गयी. उसका लडका माँ को उदास  देख इन्द्र से ऎरावत हाथी माँग लाया और अपनी माँ से कहा कि आप सचमुच के हाथी की पूजा करें. इस व्रत को विधिविधान से किया गया था, जिसके प्रभाव से उसका पुत्र विख्यात राजा हुआ. अतः इस दिन लोग हाथी की पूजा करते हैं. काशी में लक्ष्मीकुण्ड पर सोलह दिन का महालक्ष्मी का मेला लगता है जो सोहरिया मेला कहलाता है. यहाँ भक्तगण नियमपूर्वक लक्ष्मीजी का दर्शन करते हैं.

            दूसरी कथा:- एक बार नारदमुनि  स्वर्गलोक का भमण करते हुए पृथ्वीलोक पर आए और वे हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के महल में जा पहुँचे. महाराज धृतराष्ट्र और उनकी पत्नि गांधारी ने उनके चरण पखारे और उन्हें आदर के साथ सिंहासन पर बिठाया. अपनी सेवा से प्रसन्न हुए नारदमुनि ने उनसे वर माँगने को कहा. गांधारी ने अपने सौ पुत्रों का अखण्ड राज्य होने का वर माँगा. तब नारदमुनि ने कहा कि यदि वह गजलक्ष्मी का व्रत करें तो उनकी मनोकामना पूरी हो सकती है. उन्होंने उस व्रत को करने की विधि भी बतला दी.

      गांधारी को व्रत आदि की विधि बतला देने के बाद वे कुंती के महल में जा प्हुँचे.. वहाँ भी उनका बहुत आदर-सत्कार हुआ. जाने से पूर्व उन्होंने कुंती को भी इस व्रत करने की सलाह दे दी..        चुंकि गांधारी के सौ पुत्र थे, अतः उन्हें मिट्टी लाने और बडा सा हाथी बनाने में देर नहीं लगी. देखते ही देखते एक विशाल हाथी की प्रतिमा बन गयी. गांधारी ने विधिविधान से उसका पूजन किया और फ़िर उस

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ