राखी धागों का त्योहार.
( स्व.श्रीमती शकुन्तला यादव.)
हमारा देश धर्मप्राण देश रहा है. आध्यात्मिक ऊर्जा यहां के कण-कण में समाविष्ट है. यहां के व्रत-नियमों का सम्बन्ध अध्यात्मदर्शन, देवदर्शन और निरामयता से जुड़ा हुआ है. इसलिए हमारे व्रत-उपवासों की सुदीर्घ परम्परा सदा से चली आयी है. वर्ष में कोई भी दिन ऎसा नहीं रहता जिस दिन कोई व्रत, उपवास, पूजन, हवन या पर्व-त्योहार न हो. हमारी संस्कृति की नींव इसी आधार पर टिकी है. यही कारण है कि जहाँ रोम, ग्रीक, मिस्त्र और बेबीलोन आदि जैसी प्राचीन सभ्यताएं और संस्कृति काल के प्रवाह में विलुप्त होती चली गयीं, वहीं भारत की संस्कृति अक्षुण्य बनी रही. यहाँ अनेक विदेशी आक्रमण हुए, शक, हूण, यवन आये, पठान और मुगल आये, पर वे सब यहाँ की मानवता के पारावार में घुल-मिलकर अपना अस्तित्व खो बैठे, भारतीय संस्कृति के महासागर में विलीन हो गये. शायद इसलिए कहा गया है जिनके दृदय में मंगलायतन भगवान हरि विध्यमान है, उनके लिए सदा उत्सव है-नित्य मंगल है.
नित्योत्सवो भवेत तेषां नित्यं नित्यं च मंगलम* येषां हृदिस्थो भगवान मंगलायतनं हरिः( पाण्डवगीता ४५)
अनादि काल से मनाते आ रहे इस त्योहार की एक कड़ी भविष्य पुराण में मिलती है. देव और दानवों के युद्ध में असुरों के प्रहार से घबराया हुआ इन्द्र किसी अलौकिक शक्ति की तलाश में गुरु ब्रह्स्पति के पास जाता है कि वह उनका वध कर सके. संयोग से वहाँ उसकी धर्मपत्नि इंद्राणी उपस्थित थी. उसने एक धागे को अभिमंत्रित कर इन्द्र की भुजा में बांध दी. मंत्र की शक्ति से आवष्ठित धागे के प्रभाव से वह विजयी हुआ. कहा जाता है कि उसी दिन से इस त्योहार को मनाने की शुरुआत हुई थी. इसी तरह स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावातार नामक कथा में एक रोचक प्रसंग मिलता है. कथा कुछ इस प्रकार है कि राजा बलि जो विश्वविजयी तो था ही,साथ ही वह महादानी भी था. श्री विष्णु ने वामन अवतार धारण कर राजा बलि से तीन पग धरती मांगी. राजा बलि के साथ छल किया जा रहा है, उअह जानते हुए उसके गुरु ने उसे ऎसा करने से मना भी किया लेकिन वह पीछे नहीं हटा और तीन पग धरती देने का विश्चय कर लिया. श्री विष्णु ने दो पग में सारा आकाश और धरती नाप ली और पूछा कि तीसरा पैर कहाँ रखे?. उसने तत्काल अपना मस्तक झुकाते हुए अपना पैर रखने का आग्राह किया. इस तरह राजा बलि को रसातल पहुँचा दिया गया. रसातल में जाने से पूर्व उसने वर मांगा कि श्री विष्णु उसके समक्ष चौबिसों पहर उपस्थित रहेगें. इस तरह श्री विष्णु वापस न लौट कर उसके सामने उपस्थित रहने लगे. भगवान को न आया देख उनकी पत्नि श्री लक्षमीजी रसातल गयीं और राजा बलि को अपना भाई बनाते हुए रक्षाबंधन बांध दिया. प्रसन्न होकर राजा बलि ने अपनी बहन से कुछ मांगने को कहा. उन्होंने श्री विष्णु को मांग लिया और राजा ने प्रसन्नता के साथ उन्हें जाने दिया. कहते हैं उस दिन श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा थी. इस तरह यह त्योहार इस नक्षत्र में मनाने की पराम्परा विकसित हुई.
रक्षाबंधन का पर्व जहाँ सामाजिक समरसता का सूचक है वहीं यह धार्मिक प्रसंगो को भी समाहित किए हुए है, साथ ही राजनीति से भी अभिप्रेरित है. भाईयों की कलाइयों में रक्षा-सूत्र बांधने के पीछे अभिप्राय यह है कि आड़े समय में भाई उसकी सहायता करेगा और कभी शत्रु के हाथ पड़ जाने पर उसकी प्राणॊं की रक्षा करेगा. इस तरह यह त्योहार परिवार की इकाई को मजबूत बनाता है और भाई-बहन के प्रेम को विस्तारित करता है. एक प्रसंग के अनुसार द्रौपदी बचपन से ही श्रीकृष्णजी को अपना भाई मानती थी और हर साल इस पर्व पर अपने भाई की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधती थी. अनेकानेक प्रसंगों पर श्री कृष्णजी ने उसकी भरपूर मदद की, चाहे वह भरी सभा में उसके चीर हरण की घटना हो या फ़िर वनवास के समय की बात हो, उन्होंने उसे मदद देने में तनिक भी देरी नहीं लगाई.
राजा मानसिंह ने अपने युवा पुत्र को अपनी सेना का प्रमुख बनाकर सम्राट अकबर की सहायता करने के लिए दक्षिण भेज दिया था. इसी बीच गुजरात के सुल्तान फ़िरोजशाह ने मौका देखकर नागौर पर चढाई कर दी. किले को शत्रु सेना ने घेर रखा था. इस् स्थिति ने राजा मानसिंह को बहुत चिन्ता और परेशानी में डाल दिया था. वे जानते थे कि कुछ सैनिकों के भरोसे वे उसे हरा नहीं पाएंगे. अपने पिता के माथे पर घिर आए चिन्ताओं की लकीरों को पुत्री पन्ना ने पढ लिया था. उसने अपने पिता को सलाह दी कि पास की बनी अरिकन्द पहाडी पर उम्मेदसिंह नामक राजपूत राज्य करता है. उससे मदद मांगी जा सकती है. चुंकि दोनो परिवारों के बीच किसी मामले को लेकर विवाद हुआ था और तभी से शत्रुता चली आ रही थी. मानसिंह ने अपनी पुत्री से कहा कि शत्रुता के चलते वह मदद को आगे नहीं आएगा.
तभी पन्ना ने एक उपाय खोज निकाला. उसने अपने विश्वस्त और वफ़ादार युवक बेनीसिंह को बुलाया और सोने के तारों से सुन्दर मोहक राखियां, जो उसने तैयार कर रखी थी,भिजवाया. राखी के साथ एक पत्र भी था. उसने पत्र में लिखा;-“ तुम्हारी धर्म-बहिन पन्ना तुम्हें राखी भेज रही है. बहिन की राखी भाई के लिए उत्सव भी है और आमंत्रण भी. बहिन के द्वारा भेजा गया राखी का घागा भाई के लिए शौर्य और साहस की परीक्षा की कसौटी होने के साथ ही आदर्शों के लिए, सनतन धर्म की मर्यादा के लिए समर्पित होने हेतु व्रतबंध भी है. राखी पाकर वह खुशी से उछल पड़ा और तत्काल ही वह मदद के लिए जा पहुँचा.
समय-समय पर इस कच्चे धागों का महत्व समाज में आयी शिथिलता को दूर करने के मददगार साबित हुआ है. देश जब परतंत्र था उस समय जन जागरण के लिए भी इसका सहारा लिया गया. श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते हुए सन १९०५ में रक्षाबंधन त्योहार को बंगाल निवासियों की अस्मिता से जोड़ते हुए इस त्योहार का राजनीतिक उपयोग किया.
पर्वों की कड़ी में एक पर्व “रक्षाबंधन” रिमझिम-रिमझिम बरसते सावन के सुहावने मौसम में आता है. श्रावण मास शुक्ल पूर्णिमा को रक्षाबन्धन का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व भाई-बहनों को समर्पित पर्व है. इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती है और उनके दीर्घायु होने की कामना करती हैं.
विश्व में शायद ही कोई ऎसी जगह है जहाँ इस त्योहार को न मनाया जाता हो. विश्व के विभिन्न देशों में रह रहे भारतवासी इस त्योहार को बड़े चाव और उत्साह के साथ मनाते हैं अतः कहा जा सकता है कि यह त्योहार विश्वयापी त्योहार है.
फ़िल्मों ने इस त्योहार को लेकर अनेक फ़िल्में बनाई, और राखी के इस पवित्र त्योहार को विशेष स्थान दिया. अनेक स्वनामधन्य गीतकारों और कवियों ने एक से बढ़कर एक गीत लिखे, जो इस पर्व के शुरु होने से पहले ही आकाशवाणी इसे खूबसूरती के साथ पेश करता रहता है. आइए, कुछ राखी पर फ़िल्माए गए गीतों पर एक नजर डालें.
फ़िल्म रेशम की डोर में प्रख्यात गायिका लता मंगेशकर जी आत्माराम के निर्देशन में एक प्यारा सा गीत गया- बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है.( सुमन कल्याणपुर) फ़िल्म अनपढ़ मे लताजी ने ही इस गीत को गाया है—रंग-बिरंगी राखी लेकर आई बहना, राखी बंधवा लो मेरे वीर.(लता) फ़िल्म छोटी बहन में भैया मेरे रखी के बन्धन को न भुलाना.( लता) फ़िल्म बंदिनी में-अबके बरस भेज भैया को बाबुल में. फ़िल्म चंबक की कसम में –चंदा से मेरे भैया से कहना, बहना याद करे (लता), फ़िल्म दीदी मे-मेरे भैया को संदेसा पहुंचाना चंदा तेरी जोत जले.. फ़िल्म काजल में मेरे भैया, मेरे चंदा, मेरे अनमोल रतन, तेरे बदले मैं जमाने की कोई चीज न लूं( आशा भोंसले), हरे रामा, हरे कृष्णा में किशोर का गाया गीत है-फ़ूलों का तारों का सबका कहना है, एक हजारों में मेरी बहना है( किशोर कुमार), फ़िल्म बेईमान का गीत है-ये राखी बंधन है ऎसा.(मुकेश-लता). बहना ने भाई की कलाई पर राखी बांधी है- फ़िल्म रेशम की डोर, फ़िल्म अनजाना –हम बहनों के लिए मेरे भैया,. नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए, राखी धागों का त्योहार (राखी),
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