Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हसन माज़ा और रोना और भी माज़ा

 

अश्क आंखों से नहीं, दिल से बहाए मैंने,
दीप मंदिर में नहीं, दिल में जलाए मैंने.

उनको कांटों से, बहुत नफरत है, बहुत नफरत है,
कांटों के बाग ही बाग, दिल में लगाए मैंने.

दर्द के नाम से, वो डरते हैं, बहुत डरते हैं,
दर्द महमां हैं मेरे, दिल में बिठाए मैंने.

मौत के डर से, उन्हें नींद, नहीं आती है,
मौत के दूत ही दूत, दिल में बसाए मैंने.

जितना हंसने में है, उतना ही, मज़ा रोने में है,
इसलिए दोनों के घर, दिल में बनाए मैंने.

Ashok Kumar Vashist

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